निकटवर्ती सालासर धाम में लक्ष्मणगढ़ मार्ग पर अंजनी माता मन्दिर के पास नवनिर्मित चमेलीदेवी अग्रवाल सेवा सदन के नजदीक स्थित पंचवटी में मां चैरिटेबल ट्रस्ट के तत्वाधान में आयोजित राम कथा में उपस्थित जनों को कथा का अमृतपान करवाते हुए वैदिक परम्परा के पोषक परम पूज्य जूनापीठाधीश्वर आचार्य महामण्डलेश्वर स्वामी श्री अवधेशानन्द गिरी जी महाराज परमात्मा द्वारा बनाई गई सृष्टि में मनुष्य उतम कोटि का प्राणी है। जिसके विषयपाश शिथिल हो गये हों और जिसने मनोविकारों को जीत लिया है, वे धन्य हैं तथा वे ही सही अर्थों में आनन्द के अधिकारी बन जाते हैं।
स्वामी जी ने कहा कि एक ही पदार्थ यंत्र भेद के कारण अलग-अलग दिखाई देने लगता है। जो पानी एक यंत्र के सम्पर्क में आने से बर्फ बन जाता है, वही पानी दूसरे यंत्र के सहयोग से भाप बन जाता है। महाराज ने कहा कि यंत्र, तंत्र और मंत्र से कभी-कभी दशा बदल जाती है। तीनों की व्याख्या करते हुए जुनापीठाधीश्वर ने बताया कि क्रम में रहने को तंत्र, मन को एकीकृत करने वाला मंत्र तथा जिसके कारण अभिष्ट की प्राप्ति होती है वह है यंत्र। रामकथा का श्रवण करवाते हुए महामण्डलेश्वर ने कहा कि जब भगवान राम ने जन्म लिया था तब माता कौशल्या ने भगवान से कहा कि जब धरती पर जन्म लिया है तो मनुष्य की तरह आचरण-व्यवहार करो।
स्वामी जी कहते हैं कि माता कौशल्या ने भगवान से कहा कि धरती को चरित्रता, नैतिकता की आवश्यकता है और जब आप प्रकट हो गये हैं तो यहां चरित्र मुल्यों की स्थापना करें। अवधेशानन्द महाराज ने कहा कि पैदा होने पर शेर का बच्चा दहाड़ता है, बकरी का बच्चा मिमियाता है, मनुष्य का बच्चा रोता है परन्तु गाय का बछड़ा एक मात्र ऐसा जीव है जो जन्म लेने के बाद ओ मां कह कर मां को याद करता है। उन्होने कहा कि व्यक्ति को बोलने की आवश्यकता नहीं होती, महापुरूषों का चरित्र एवं क्रियाकलाप ही उनके द्वारा क्या कहा जाना है उसके बारे में संकेत दे देते हैं।
महाराज ने कहा कि प्रत्येक साधक को अलग-अलग अनुभुतियां होती है और अनुभुतियों का अन्त ही आनन्द है। व्यासपीठ पर विराजमान होकर उपस्थित जनमेदिनी को कथा श्रवण करवाते हुए जुनापीठाधीश्वर ने प्रसव गृह के बाहर खड़े महाराज दशरथ की अनुभुति का वर्णन करते हुए कहा कि प्रसव गृह के अन्दर माता कौशल्या को भगवान के दर्शन करने और उनसे वार्तालाप करने की जो अनुभुति हुई उसमें और महाराज दशरथ द्वारा बाहर खड़े होकर सुनने की अनुभुति में बड़ा अन्तर है। उन्होने कहा कि सुनने से अलग-अलग शरीर में अलग-अलग रसायन बनते हैं। महाराज ने दान, दक्षिणा, न्यौछावर, चंदा, भेंट आदि में अन्तर बताते हुए कहा कि भगवान तथा अपने माता-पिता और गुरू को दान नहीं दिया जाता है, उनके समक्ष तो अपना सर्वस्व न्यौछावर किया जाता है। महामण्डलेश्वर ने कहा कि इन्द्रियों को सहेज लेना और बुराईयों को छोडऩा ही भजन है। उन्होने कहा कि बच्चे के अन्नप्रक्षालन, अक्षर ज्ञान, नामकरण, उपनयन आदि संस्कार मुर्हुत से करवाने चाहिए, ना कि अपनी सुविधानुसार इन संस्कारो को करना चाहिए। विधि के साथ जितना जियोगे उतना ही सामथ्र्य, वैभव बढ़ेगा और विभुतियां आयेगी। महाराज ने तिथी, नक्षत्र, वार, योग तथा कर्म को काल के पांच अंग बताते हुए कहा कि राम की लीला लोकोत्तर है, राम जैसा कोई नहीं है।
उन्होने कहा कि पाण्डित्य को पूर्णता तभी मिलती है, जब उसे परमात्मा मिल जाये तथा सन्यास की सार्थकता सचिदानन्द की अनुभुति होने पर ही है। स्वामी जी ने कहा कि वैराग्य और विवेक के मिलने पर ब्रह्मानुभुति होती है। महाराज ने कहा कि जो निराश, हताश और विधार्जन करने में असफल रहे, उसे पण्डित या कथाकार नहीं बनना चाहिए। संयम में सौंदर्य, पवित्रता, बल और आकर्षण को छुपा हुआ बताते हुए महाराज ने कहा कि जिसने अपने आचरण से लोक को जीत लिया हो वही भरत है। अवधेशानन्द जी महाराज ने कहा कि अपने चरित्र को इतना बड़ा यानि की उच्च कोटि का बनाये कि आपके शत्रु आपके नाम से ही भयभीत हो जाये और चरित्र को वेद महान बनाते हैं। वेद व्यक्तित्व के साथ-साथ विराटता भी पैदा कर सबल प्रदान करते हैं।
आलस्य, प्रमाद, जड़ता, आसक्ति को मनुष्य का शत्रु बताते हुए जुनापीठाधीश्वर ने कहा कि व्यक्ति अपनी दुर्बलताओं, वासनाओ और कमजोरियों के कारण हार जाता है तथा ज्ञानी से संवाद रूकने पर विकास भी रूक जाता है। कथा के दौरान महामण्डलेश्वर ने कहा कि देश की विकास दर में डेढ़ प्रतिशत योगदान तीर्थयात्रियों का है। इससे पूर्व व्यासपीठ तथा रामायण जी की पूजा-अर्चना मुख्य यजमान श्रीमती नीना व श्री विनोद अग्रवाल ने की तथा महाराज जी का स्वागत किया। विष्णु बिन्दल, पी.सी. गर्ग, राकेश मंगल, सुरेश बिन्दल, रमेश सिंगला, सशील बेरीवाल, जगदीश पुजारी, नरोतम पुजारी, रविशंकर पुजारी, वेंकटेश्वर मन्दिर के ट्रस्टी आलोक कुमार जाजोदिया, प्रभु प्रेमी संघ के शशिभुषण गुप्ता, महेन्द्र लाहोरिया ने महाराज जी का स्वागत किया तथा महाराज जी ने दुपट्टा ओढ़ाकर सभी को आर्शीवाद दिया।