सालासर के मोहन धाम मे श्री राम कथा

shree Ram Katha

सिद्धपीठ सालासर धाम के मोहन धाम में चल रही श्रीराम कथा के आठवे दिन शनिवार को कथा वाचक रमेश भाई ओझा ने कहा कि निति, पुण्य और धर्म के मार्ग पर चलने का नाम ही भगवान है। जिस मनुष्य की तृष्णा व लालच करता है उसके घर में दरिद्रता का निवास होता है। तृष्णायें मनुष्य को गरिब बना देती है। मनुष्य एक मुसाफीर की तरह होता है तथा भगवान मालिक ऐक मालिक होता है। मनुष्य को अहंकार नहीं करना चाहिये। उन्होने कहा भगवान की अनुकंपा से ही हम अच्छे कार्य करते है।

भगवान ने शरिर व बुद्धि दी है इसलिये कर्म करते रहना चाहिये। मनुष्य का शरिर ही सर्वश्रेष्ठ है। पूरा जिवन ईन्द्रियों और संसार के कामों में ही खराब नहीं करना चाहिये। मनुष्य शरिर से ही मोक्ष और नर्क का द्वार चुन सकते है। मनुष्य का मन बहुत दुर्लभ होता है। मनुष्य को जिवन में संतोष रखना चाहिये। जिवन बहुत मुल्यवान है। बुद्धि में ज्ञान का विवेक और प्रकाश हो उसके जिवन में मां लक्ष्मी के प्रति श्रद्धा रहती है। राम का अर्थ होता है समर्पण करना व त्याग करना तथा छीनना व भोग करना रावण का अर्थ होता है।

जो मेरे पास ही है वही मेरा है ये सोचने वाला सजन पुरूष कहलाता है। जिय घर में पैसा का सदउपयोग होता है वहां लक्ष्मी का निवास होता है। इससे पूर्व महावीर पुजारी ने बालाजी के इतिहास के बारे में जानकारी दी। श्यामसुन्द्र अग्रवाल, केशव अग्रवाल, भंवरलाल पुजारी विजयकुमार पुजारी, भगत पुजारी, बिहारी पुजारी, सांवरमल पुजारी, मांगीलाल पुजारी, बनवारी पुजारी, आशिष दवे, अंकित पुजारी व मनोज पुजारी ने कथा वाचक का स्वागत किया।

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