सालासर बालाजी का उद्ïभव
भारतवर्ष प्रसिद्घ सिद्घपीठ सालासर बालाजी के उद्ïभव तथा सालासर में प्रतिष्ठïापित होने का इतिहास भी बालाजी के चमत्कारों में से एक चमत्कार है। अपने भक्त की भक्ति से प्रसन्न होकर उसे अमरत्व प्रदान करने वाले सालासर बालाजी महाराज की प्रतिमा का उद्ïभव का नागौर जिले के आसोटा गांव में 1811 में हुआ था। बताया जाता है कि महात्मा मोहनदास जी महाराज की तपस्या से प्रसन्न होकर हनुमान जी ने साक्षाम मूर्ति रूप में प्रकट होने का वचन दिया था। अपने भक्त से किये इस वचन को निभाने के लिए बालाजी ने आसोटा में एक जाट जो कि खेत जोत रहा था, के हल की नोक में कोई कठोर चीज फंसने का का उसे आभास हुआ, तो उसने उसे निकाल कर देखा तो एक पत्थर था। जिसे जाट ने अपने अंगोछे से पोंछकर साफ किया तब उस पर बालाजी महाराज की छवि उभर आई। मूर्ति को जाट ने जांटी के नीचे रख दिया। तभी जाटनी जाट के लिए खाना लेकर आ गई। उसने बालाजी के मूर्ति के बाजरे के चूरमे का भोग लगाया। तभी से बालाजी के चूरमे का भोग लगता है। अपने वचन के मुताबिक बालाजी ने उसी रात्री को आसोटा के तत्कालीन ठाकुर को स्वपन्न में दर्शन देकर मूर्ति को सालासर पंहुचाने को कहा तथा इधर मोहनदास जी को अपने मूर्ति स्वरूप में सालासर आने की बात कहते हुए कहा कि जहां पर बैलगाडिय़ों के पहिये रूके वहीं मेरी मूर्ति को स्थापित कर देना। आसोटा से मूर्ति लेकर वहां के ठाकुर सालासर पंहचे तब सालासर वासियों ने मूर्ति की अगवानी की। उसके बाद बैलों को खुला छोड़ दिया। तब बैल मोहनदास जी के आश्रम के पास आकर रूके। जहां वर्तमान मन्दिर हैं।
बाबा मोहनदास की तपोस्थली
बाबा मोहनदास जी ने तीन सौ वर्ष से पहले अपने हाथ से सालासर मन्दिर में धुणी प्रज्जवलित की थी, जो आज भी ज्यों की त्यों प्रज्जवलित है। जब से हनुमान जी महाराज सालासर में विराजमान हुए हैं, तब से अखण्ड जारी है। मोहनदास जी का समाधिस्थल जन-जन की आस्था का केन्द्र है। महात्मा मोहनदास जी चोला, जो कि अब मन्दिर की गद्ïदी है, उन्होने अपने भानजे उदयराम जी पहना दिया। उदयरामजी ही मन्दिर के प्रथम पुजारी बने। महात्मा मोहनदास जी ने चोले के अतिरिक्त अपने भानजे उदयराम को हाथ के कड़े तथा धुप डब्ï्ïबी दी थी, जो कि आज भी मन्दिर में विद्यमान है।
सालासर बालाजी के दाढ़ी-मूंछ
भारतवर्ष के समस्त बालाजी के मन्दिरों में सालासर बालाजी के अलावा किसी ओर मन्दिर में बालाजी के दाढ़ी-मूंछ नहीं है। इसका कारण यह बताया जाता है कि मोहनदास जी ने बालाजी से कहा था कि आप उसी स्वरूप में विराजमान हों, जिस स्वरूप में आपने मुझे सर्वप्रथम दर्शन दिये थे। मोहनदास जी ने बालाजी का प्रथम साक्षात्कार दाढ़ी-मूंछ के रूप में ही किया था।
मुसलमान कारीगरों ने किया मन्दिर निर्माण
सालासर बालाजी के मन्दिर के लिए आसोटा से बालाजी की प्रतिमा लेकर आने वाले बैल जहां रूके वहां बालाजी पर बालाजी का मन्दिर बनवाने के लिए मुसलमान कारीगरों को बुलवाया गया। बताया जाता है कि जुलियासर ठाकुर जोरावरसिंह के अदीठ रोग होने पर बालाजी बाबा का बुंगला बनाने के लिए फतेहपुर से मुसलमान कारीगर नूर मोहम्मद व दाऊ नामक कारीगरों को बुलाकर बुंगला बनवाया।
सालासर में अंजनी माता का प्राकट्य
जिला सीकर के ग्राम लक्ष्मणगढ़ के ज्योतिष शास्त्र के प्रकाण्ड विद्वान त्रिकालज्ञ पंडित जानकीप्रसाद पारीक अंजनीनन्दन के सिद्धपीठ में रहकर अंजनीनन्दन को रामायण, भागवत, पुराण आदि सुनाया करते थे। वे उस समय के प्राय: सभी पुजारी वर्ग के जनेऊ गुरू थे। उन्ही के पिता बालमुकुंदजी की प्रेरणा से पुजारी वर्ग ने श्री मोहनदास जी महाराज की समाधी की पूजा-अर्चना प्रारम्भ की। उनका कहना था कि जिस भक्तराज की हम कमाई खाते हैं, उनकी पूजा-अर्चना दोनो समय होनी चाहिये। महात्मा जी की समाधी शमसान भूमि में थी, अत: सुबह-शाम अंधेरे में सामान्य आदमी वहां जाने में संकोच करता व उसे भय लगता था। अस्तु पंडितजी ने प्रतिदिन पूजा अर्चना का भार अपने ऊपर ले लिया और जब तक इस आसार-संसार में रहे नियमित रूप से इस सेवा को निभाया। उनके पश्चात पंडित जानकीलाल जी ने भी इस सेवा को यथावत रखा। जानकीलाल जी के परमधाम प्रस्थान करने के पश्चात उनके पुत्र पन्नाराम जी ने भी इस सेवा को नियमित बनाये रखा। पन्नाराम जी के प्रयाग गमन के पश्चात पुजारी परिवार स्वयं सेवा करने लगा। सालासर मन्दिर को बने एक लम्बा अन्तराल बीत जाने के बाद एक रात में अकस्मात अंजनीनन्दन ने अपनी जन्मदात्री माता का मानसिक आह्वान किया। पुत्र प्रेम में विह्वल माता अपने पुत्र से ह्रदय से लिपटकर मिली। बालाजी ने विनम्र होकर बतलाया कि माता आपके शुभार्शीवाद का ही प्रताप है मैं यहां रहकर अपने भक्तों की मनोकामनायें पूर्ण कर रहा हूं। माता अंजनी पुत्र से प्रसन्न होकर बोली कि तात बता मैं तुम्हारा क्या कल्याण करूं।
तत्क्षण बालाजी बोले कि आपके व माता जानकी के प्रताप से भक्तों को देने के लिए मेरे लिए कुछ भी अदेय नहीं हैं, किन्तु मैं ठहरा बाल ब्रह्मचारी, स्त्री व बाल विषयक समस्याओं एवं यौन व्याधियों आदि के समाधान में मुझे कुछ उलझन होती है, मां इसके निराकरण के लिए आप मेरे पास रहकर भक्तों की मनोकामनायें पूर्ण करने में मेरा सहयोग प्रदान करेंगी तो मैं अपने को सौभाग्यशाली समझूंगा। मां मन ही मन मुस्कराकर बोली पुत्र तुम्हारी समस्या मैं समझ गई। सचमुच यह काम तुम्हारे बुते का नहीं हैं। मैं तुम्हारी सहयाता करूंगी जरूर किन्तु तुम्हारे सानिध्य में रहकर नहीं। तुम्हारे धाम के नजदीक ही अलग स्थान बनाकर समस्या का समाधान किया जा सकता है। प्रत्युतर में बालाजी द्वारा अलग विराजने का कारण पुछने पर माता अंजनी ने समझाया कि तुम्हारे पास रहने से या तो प्रथम पुजा मेरी होगी और तुम गौण हो जाओगे, जो मुझे स्वीकार नहीं और या प्रथम पुजा तुम्हारी हो तो मैं गौण हो जाऊंगी, जो तुम्हे स्वीकार नहीं होगा। अब यह तुम्हारी इच्छा पर निर्भर है कि तुम मुझे कहां और किसकी सेवा में पूजा में देते हो। बालाजी महाराज को माता अंजनी की बात ठीक लगी और उन्होने अपनी राय प्रकट की कि मेरा एक भक्त है पन्नाराम पारीक, जिसके प्रपिता बालमुकुन्द एवं पिता जानकीलाल ने वर्षों तक मेरे भक्त मोहनदास की समाधी की सुबह-शाम पूजा-अर्चना की है। मैं इस परिवार को भी कुछ देना चाहता हूं।
जिसप्रकार मेरी पूजा आरधना करने के बदौलत श्री मोहनदास के भाणेज उदयराम की संतति भक्तराज की तपस्या का नवनीत पान कर रही है, उसी प्रकार मेरे भक्त मोहनदास की सेवा पूजा करने वाले बालमुकुन्द व जानकीलाल के परिवार वाले भी आपकी पूजा करके उनकी तपस्या का नवनीत पान करे। बात माता अंजनी को ठीक लगी तो उन्होने कहा कि पुत्र ऐसी व्यवस्था करो कि जिससे पन्नाराम में विरक्ति के भाव उत्पन्न हो एवं मेरे प्रति अनुराग उत्पन्न हो। कम से कम 12 वर्ष तपस्या वह मेरे लिए करे तभी मैं प्रसन्न होऊंगी। सुनकर अंजनी नन्दन फुले नहीं समाये और बोले निकट ही जुलियासर मार्ग पर जो तलाई है, वहां पर पन्नाराम तपस्या करे, इसकी व्यवस्था मैं शीघ्र ही करूंगा। विधि का विधान किसी से टाला नहीं जाता। पंडित पन्नाराम की पत्नि का एकाएक स्वर्गवास हो गय। पंडित जी में हरि की प्रेरणा से विरक्ति के भाव जागे। घर, परिवार, सम्पति का मोह त्यागकर साधु वृति में आ गये। गृह त्यागी होकर छोटे-छोटे बच्चों का मोह त्याग कर प्रयाग चले गये। कुछ वर्ष पश्चात अंजनीनन्दन के संकेत से पुन: सालासर लौटने के लिए विवश हुए। पूर्व योजनानुसार जुलियासर तलाई में कुटिया बनाकर रहने लगे। यात्रियों को पानी पिलाना, गीता, भागवत, रामायण आदि का मनन करने लगे और अंजनी माता की आराधना करने लगे। कुछ वर्षोँ तक एक समय भोजन, कुछ वर्षों तक फलाहार, कुछ वर्षोँ तक किंचित मात्र दूध पर रहकर माता अंजनी की तपस्या आराधना में लगे रहे। 24 वर्ष पूरे होने र मातेश्वरी प्रकट हुई, प्रसन्न हुई। वर्षों की तपस्या फलीभूत हुई। माई ने सीकर नरेश कल्याणसिंह को प्रेरित किया। राजघराने से मूर्ति मंगवाई गई। ज्येष्ठ बदी 5 सोमवार सम्वत 2020 को शुभ मुर्हुत में प्रतिस्थापित की गई। चर्तुभुत रूप, गोदी में अंजनीनन्दन के दर्शन पाकर सभी प्रफुल्लित हुए। इस कार्य में सालासर के पुजारी परिवार, जुलियासर एवं तिड़ोकी के राजपूत एवं चौधरी वर्ग सभी का सहयोग रहा। मात्र दस वर्ष अपने सानिध्य में माई के मन्दिर की कार्य प्रणाली व्यवस्थित कर 75 वर्ष की आयु में पौष कृष्ण एकादशी सम्वत 2030 को पन्नाराम जी महाराज माई की सेवा पूजा का भार अपनी संतती के जिम्मे छोड़कर परमधाम को प्रस्थान कर गये।
अष्ट सिद्धि नवनिधि दात्री है अंजनी माता
स्त्रियों एवं बालकों के कष्ट निवारण में माता अंजनी को विशेष रूचि है। मां के गर्भधारण के पश्चात प्रसव तक जच्चा बच्चा दोनो की सभी परिस्थितियों में रक्षा करने में माई पूर्ण समर्थ है। माई के नाम की तांती बांध देने मात्र से रोगी अपने आप को पूर्ण सुरक्षित समझन लेता है। हां मां पर पूर्ण विश्वास व श्रद्धा रखना पहली शर्त है। माई को निरन्तर याद रखने से स्त्रियों का सुहाग सुरक्षित रहता है, उनके पति, पुत्र एवं भाई लम्बी आयु पाते हैं तथा पूरा परिवार सुखी एवं खुशहाल रहता है। मां अन्नपूर्णा है, स्मरण रखने से कभी भण्डार खाली नहीं होने देती है। माई अक्षय निधि की दाता है। स्त्री जाति होने से मां को भी वस्त्राभुषण प्रिय है। मंगल, शनि व उजियाला चौदस माई के विशेष दिन है। इन दिनों में की गई प्रार्थना माई तुरन्त सुनती है।
parbhu shree balaji ki kripa apne sabhi bhakto per sadev bani rahe isi asha ke sath parbhu charno me sadev parnam
parbhu shree balaji ki kripa apne sabhi bhaktho per bani rahe.
parbhu charno me sadev parnam
parbhu charno me sadev parnam
kya hua sujangarh ke zila banne ka
Jai ho shree salasar bala ji maharaj ki
jinke tan m h shree ram jinke man m h shree ram jag m sabse h balwan aise pyare nyare mere hanuman!!. jai ho!