
जूनापीठाधीश्वर आचार्य अवधेशानंद ने कहा कि मानव जीवन ईश्वरीय उपहार व भवसागर तरण के लिए है। महामंडलेश्वर ने कहा कि जिसने जीवन में सत संकल्प प्रसाद से सिद्धियों पा ली है उसके पास किसी भी प्रकार का अज्ञान व द्वंद्व नही आएगा। महाराज ने कहाकि मनुष्य का जैसा संकल्प होगा उसे वैसी ही सिद्धियां,सामथ्र्य व साधन पा्रप्त होंगे। उन्होंने कहा कि राम से मानव देह का मिलन होने पर करोड़ों जन्मों के पाप मिट जाते हैं।
स्वामी जी ने कहा कि तमोगुण रजोगुण से शिथिल होते हैं व रजोगुण सतोगुण से व इसके लिए प्राणी मात्र में मन,कर्म,वचन व दृढ़ता की एक्रागता आवश्यक है। अवधेशानंद महाराज ने कहा कि साधक वह है जिसकी संसार में किसी से भी कोई परिवाद नहीं होता। उन्होंने कहा कि परिवाद कम होंगे तो साधना का बल बढ़ेगा व परिवाद ज्यादा होंगे तो साधना का बल घटेगा। स्वामी जह ने कहा कि हम परिवाद का कारण खोजेंगे तो अपने आप को सामने पाएंगे।
उऩ्होंने कहा कि मनुष्य आल्सय व परमाद के कारण योग्य अवसर खो देता है जिसकी शिकायत के लिए वह ओरों को खोजता फिरता है। इससे पूर्व स्वामी जी का मुख्य यजमान विनोद,नीना रम्या ,दिनेश मित्तल,सुरेश गोयनका,परेश गुप्ता,संजीव डांगी,प्रियंका गर्ग,गोपाल सिंहला, ने महाराज का स्वागत किया।