यंग्स क्लब में जीवन्त हुई राजस्थानी लोक संस्कृति

स्थानीय यंग्स क्लब के माणक जयन्ति समारोह के तहत राजस्थान संगीत नाटक अकादमी जोधपुर तथा खेमचन्द डूंगरवाल के सौजन्य से आयोजित लोक संगीत संध्या का कस्बेवासियों ने भरपूर आनन्द लिया। पूर्व विधायक रामेश्वर भाटी की अध्यक्षता में स्व. भीकमचन्द कलकतीदेवी डूंगरवाल की पुण्य स्मृति में आयोजित कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पूर्व मंत्री खेमाराम मेघवाल, विशिष्ट अतिथि तेरापंथ सभा के अध्यक्ष पृथ्वीराज बाफना, राजस्थान संगीत नाटक अकादमी जोधपुर के कार्यक्रम अधिकारी शांतिलाल सैन, समाजसेवी विजयसिंह कोठारी, खेमचन्द डूंगरवाल थे।

मां सरस्वती की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्जवलन से शुरू हुए कार्यक्रम में अन्तराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त 30 कलाकारों ने प्रदेश की सतरंगी संस्कृति के इन्द्रधनुषी मनभावन रंगों से उपस्थित हजारों संगीत रसिकों को आनन्दित कर दिया। प्रख्यात लोक गायक असलम खां लंगा व साथी द्वारा प्रस्तुत केसरिया बालम तथा गोरबन्द की सुरीली प्रस्तुतियों पर श्रोता झूम उठे। अलवर के मेवाती घराने के मशहूर भपंग वादक उमर फारूक मेवाती ने अपने भाई मेहमूद के साथ भपंग वादन कर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाते शेर-ओ-शायरी कर भरपूर तालियां बटोरी। किशनगढ़ के विरेन्द्रसिंह व साथी कलाकारों द्वारा प्रस्तुत चरी एवं घूमर नृत्य पर उपस्थित जनमेदिनी ने भरपूर दाद दी।

कालूनाथ एण्ड पार्टी जोधपुर के कलाकार रेखा द्वारा प्रस्तुत भवाई नृत्य तथा समदा द्वारा प्रस्तुत कालबेलिया नृत्य पर दर्शक झूम उठे। अशोक शर्मा एण्ड पार्टी के कलाकारों ने मयूर नृत्य तथा फूलों की होली व ल_मार होली की अभिनव प्रस्तुतियों के द्वारा दर्शकों को दांतो तले अंगुली दबाने पर विवश कर दिया। कार्यक्रम के समापन पर सभी कलाकारों ने साहित्य मनीषी स्व. कन्हैयालाल सेठिया की अमर रचना धरती धोरां री की समवेत प्रस्तुति से गायन, वादन, नृत्य के त्रिवेणी संगम के साथ प्रस्तुत कर लोक संगीत संध्या को अविस्मरणीय बना दिया। पूर्व मंत्री खेमाराम मेघवाल ने क्लब के सेवा कार्यों को प्रशंसनीय बताया, वहीं पूर्व विधायक रामेश्वर भाटी ने प्रदेश की लोक संस्कृति के संरक्षण -संवर्धन के लिए इस प्रकार के कार्यक्रमों को जरूरी बताया। क्लब अध्यक्ष निर्मल भुतोडिय़ा ने आयोजन की पृष्ठभुमि को रेखांकित किया। सांस्कृतिक सचिव गिरधर शर्मा ने स्वागत भाषण के साथ कलाकारों का परिचय दिया। अतिथियों का स्वागत विमल भुतोडिय़ा, हाजी मोहम्मद, गोपाल चोटिया, देवेन्द्र कुण्डलिया ने किया। कार्यक्रम को सफल बनाने में महावीर मिरणका, निर्मल बोकडिय़ा, मुन्नालाल प्रजापत, संतोष बेडिय़ा, मंगतूलाल मोर, अयूब खां का योगदान रहा। संचालन वन्दना कुण्डलिया ने किया।

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