अनुठा है सुजानगढ़ का वेंकटेश्वर मन्दिर

राजस्थान की थळी, शेखावाटी एवं मारवाड़ जैसी व्यापक एवंं विराट संस्कृतियों के अद्भुत संगम पर बसे गुरू द्रोणाचार्य की तपोस्थली, वीर शासकों, कवियों, उद्योगपतियों एवं सिने जगत के गीत-संगीत की दुनिया की अनेक विभुतियों तथा काव्य एवं साहित्यक जगत के महामनीषी कन्हैयालाल सेठिया की जन्मस्थली और शिशुपाल की राजधानी चन्देरी के नाम से विख्यात लाडनूं के नजदीक बसा सुजानगढ़ मन्दिरों के लिए भी पूरे भारतवर्ष में अपनी एक अलग पहचान रखता है। खरबूजाकोट के नाम से इतिहास में दर्ज सुजानगढ़ के नजदीक ही जगत् सालासर बालाजी धाम जहां देश-विदेश के लाखों श्रद्धालुओं के आने का तांता पूरे वर्ष भर लगा रहता है।

सालासर में बड़े-बड़े राजनीतिज्ञों, कलाकारों और अपने-अपने क्षेत्र की ख्यातनाम हस्तियों सहित करोड़ों श्रद्धालु प्रतिवर्ष कनक दण्डवत और पैदल चलकर बालाजी के दर्शनों के लिए आते हैं, वहीं देश-विदेश में क हीं भी बसने वाले शेखावाटी के वाशिंदे मालासी भैँरूजी के धोक लगाने के लिए दौड़े चले आते हैं। कांच की जड़ाई एवं स्थापत्य कला का बेजोड़ संगम श्री देव सागर सिंघी जैन मन्दिर, दीवारों और फर्श पर जगह-जगह चांदी के सिक्कों की जड़ाई के लिए विख्यात रूपयों वाला मन्दिर सभी को अपनी ओर आर्कषित करते हैं। सुजानगढ़ के एक ओर सालासर बालाजी विराजमान है तो दूसरी ओर डूंगर बालाजी की अपनी छटा निराली है। धरती से करीब 1200 फीट की ऊंचाई पर स्थित यह मन्दिर जहां कभी पाण्डवों ने अपना अज्ञातवास काटा था, ऐसी किवंदती प्रचलित है। यह स्थल कौरवों और पाण्डवों के गुरू द्रोणाचार्य की तपोस्थली के रूप में भी जाना जाता है।

इसी कारण इसे द्रोणगिरी के नाम से भी पहचाना जाता है। इन सबसे अलग अपने अण्डाकार प्रस्तरों से पुरातत्वविज्ञों एवं इसे देखने आने वालों में कौतुहल जगाता स्यानण डूंगरी पर स्थित काली माता का मन्दिर, जिसके बारे में जानने के लिए उत्सुक जनों का आना-जाना वर्ष पर्यन्त लगा रहता है। ये विख्यात एवं अपनी अलग पहचान लिए मन्दिर सुजानगढ़ की पूरे भारत में एक अलग छवि प्रस्तुत करते हैं। सुजानगढ़ की पावन धरा पर 21 फरवरी 1994 का वह पावन दिन जब तत्कालीन मुख्यमंत्री भैंरोंसिंह शेखावत ने दक्षिण भारत में अवस्थित वेंकटेश्वर मन्दिर की तर्ज पर सेठ सोहनलाल जाजोदिया द्वारा निर्मित भगवान वेंकटेश्वर के मन्दिर का उद्घाटन कर इसे आमजनता के दर्शनार्थ खोल दिया। दक्षिण भारतीय कारीगरों द्वारा निर्मित इस मन्दिर की भव्यता की प्रशंसा बड़े-बड़े लोगों ने की है। भगवान विष्णु के प्रतिरूप भगवान वेंकटेश्वर की विशाल प्रतिमा वही है, जो तिरूपति में है। मन्दिर की भीतरी दीवारों पर रामायण व भगवान विष्णु के दशावतारों तथा उत्तर एवं दक्षिण भारतीय सप्त ऋाषियों के मूर्ति शिल्प ऐसे उकेरे गये हैं, मानो अभी बोल पड़ेंगे। भगवान वेंकटेश्वर की भव्य प्रतिमा के समक्ष उनके वाहन गरूड़ की काले पत्थर से निर्मित प्रतिमा सबको आर्कषित करती है।

गरूड़ प्रतिमा के निकट ही 51 किलो का स्वर्ण मण्डित गरूड स्तम्भ सबका मन मोह लेता है। मन्दिर की स्थापत्य कला एवं मूर्ति शिल्प के लिए दक्षिण भारतीय शिल्पकारों की वर्षोँ की मेहनत के परिणामस्वरूप उतरी भारत के एक मात्र भगवान वेंंकटेश्वर के मन्दिर का निर्माण कार्य पूरा हुआ। शिक्षा जगत में अपनी अलग पहचान बनाने वाले जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय लाडनूं और कृष्ण मृगों के लिए विश्व भर में विख्यात तालछापर कृष्ण मृग अभ्यारण्य के बाद सुजलांचल को नई पहचान देता वेंकटेश्वर मन्दिर, जहां असीम श्रद्धा के साथ दूर-दूर से अपनी मनोकामनाएं लेकर श्रद्धालु आते हैं और मनवांछित फल प्राप्ति के लिए अर्चना करवाते हैं। मन्दिर में भगवान वेंकटेश्वर के उतर में गोदम्बा जी, जो कि भगवान की अनन्य भक्त थी, की प्रतिमा है। दक्षिण में गोदम्बा जी की वही मान्यता है, जो राजस्थान में भक्तिमती मीरां की है।

वेंकटेश्वर भगवान के बराबर में दक्षिण की ओर उनकी पत्नि पदमावती जी अर्थात लक्ष्मी जी की प्रतिमा है। मन्दिर के ऊंचे गुम्बद मीलों दूर से ही मन्दिर की भव्यता की कहानी कहते हैं। मन्दिर में प्रतिवर्ष ब्रह्मोत्सव व पवित्रोत्सव का आयोजन ट्रस्टी मंजू देवी जाजोदिया की देख-रेख में किया जाता है। विश्व कल्याण के लिए होने वाले इन आयोजनों में दक्षिण भारतीय वेदपाठी विद्वान पण्डितों द्वारा मंत्रोच्चारण पूर्वक हवन में आहूतियां दी जाती है। प्रतिवर्ष बसन्तपंचमी से प्रारम्भ होने वाले ब्रह्मोत्सव में अनुज्ञा, मृतिका, संग्रहण, अंकु रारोपण, विष्वक्सेन, वेद प्रबन्ध पाठ, प्रात: पूजा, रक्षा बंधन, हवन, ध्वजारोहण, उत्सव, तिरूमंजन, अभिषेक, वेद पाठ, भोगादि-प्रसाद वितरण, भेरी पूजा, कुम्भ स्थापना, यज्ञशाला होम, सवारी, कल्याणोत्सव, भगवान का विवाह, चक्रस्नान, अवभ्सृतोत्सव आयोजित होते हैं तथा अंतिम दिन भगवान की गरूड़ सवारी नगर भ्रमण के लिए निकलती है।

25 वर्ष पूर्ण होने पर हुआ सौंदर्यकरण
मन्दिर निर्माण के 25 वर्ष पूर्ण होने पर आगामी सात नवम्बर से 15 नवम्बर तक ब्रह्मोत्सव का आयोजन किया जायेगा। ब्रह्मोत्सव शुरू होने से पहले दक्षिण भारतीय कारीगरों द्वारा चार माह तक लगातार काम कर मन्दिर की नक्काशी एवं मूर्तियों का सौंदर्यकरण किया गया।

टीन शेड का निर्माण
मन्दिर में प्रतिवर्ष होने वाले पवित्रोत्सव एवं ब्रह्मोत्सव के लिए यज्ञ शाला अब तक टैण्ट में ही बना कर हवन आदि सम्पन्न किये जाते रहे हैं। लेकिन इस बार मन्दिर की ट्रस्टी मंजू देवी जाजोदिया ने मन्दिर परिसर में एक टीन शेड का निर्माण करवाया है। टीन शेड का निर्माण होने से वैदिक आयोजनों एवं हवन आदि कार्यो में खराब मौसम से बचाव होगा।

ब्रह्मोत्सव में होंगे ये आयोजन
07 से 15 नवम्बर तक होने वाले महोत्सव में कुम्भ आविष्कारम् एवं ब्रह्मोत्सव के अलग-अलग कार्यक्रम होंगे। मन्दिर की ट्रस्टी मंजू देवी जाजोदिया ने बताया कि कुम्भ आविष्कारम् के तहत सात नवम्बर गुरूवार को विश्वकसेनार पूजा, अबिगई मिथसंग्रहम्, अंगुरापनम्, वेद प्रबंधम्, परायणम् प्रारम्भ, वास्तु शांति, थीरू बंधनम्, आठ नवम्बर को रक्षाबंधन, शकथिया करशनम्, याग सलाई प्रवेशम् कुंबा, बिना, मडला, अग्नि चतुस्थान पूजा, दिव्य होम पूर्णाहूति, शत्रु मुराई, उधस्वार, 108 कलश थिरूमंजनम्, चतुस्थाना पूजा, दिव्य होम पूर्णाहूति, शत्रुमुराई, नौ नवम्बर को विमानामस राजगोपुरम् थिरूमंजनम् रक्षाबंधनम् चतुस्थाना पूजा, दिव्य होम, पूर्णाहूति, शत्रुमुराई, कलश थिरूमंजनम् रक्षाबंधनम्, चतुस्थाना पूजा, दिव्य होम, पूर्णाहूति, शत्रुमुराई, 10 नवम्बर को चतुस्थाना अर्चना, महासमप्रकोशनम् सहित अनेक प्रकार की पूजा होगी। ट्रस्टी मंजू देवी जाजोदिया ने बताया कि ब्रह्मोत्सव के तहत 10 नवम्बर को अनुज्ञा, मुत्तिका संग्रहण, अंकुरारोपण, विष्वसेन पूजा, वेद प्रबंध पाठ, प्रारम्भ पूजा, 11 नवम्बर को प्रात: पूजा, रक्षा बंधन, हवन, ध्वजारोहण, उत्सव, तिरूमंजन (अभिषेक), वेदपाठ, भोग, भेरी पूजा, कुम्भ स्थापना, यज्ञशाला होम, सवारी, पाठ, भोग, आरती एवं गोष्ठी, 12 नवम्बर को प्रात: पूजा, हवन, चूर्णाभिषेक, पाठ, भोग, आरती, पूजा, सवारी, पाठ, भोग, आरती एवं गोष्ठी, 13 नवम्बर को प्रात: पूजा, हवन, पाठ, उत्सव, भोग, तोट्टी तिरूमंजन (पुष्करनी स्नान), पूजा, हवन, उत्सव, पाठ, भोग, आरती एवं गोष्ठी तथा शाम को डाण्डिया रास, 14 नवम्बर को प्रात: पूजा (अभिषेक), हवन, पाठ, उत्सव, भोग, आरती, हवन, पाठ, उत्सव एवं गोष्ठी तथा कल्याणोत्सव (भगवान का विवाह), भजन संध्या, शेषनाग सवारी तथा 15 नवम्बर को भगवान का अभिषेक, चक्रस्नान, पूर्णाहूति, पुष्प अभिषेक आदि आयोजन होंगे। जाजोदिया ने बताया कि लोक विश्रुत भागवत भूषण मानस राजहंस बाल व्यास डॉ. मनोज मोहन शास्त्री पुराणाचार्य वृंदावन के सानिध्य में 15 नवम्बर को फूलों की होली व संकीर्तन का आयोजन होगा।

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