साहित्यकार व प्रबुद्ध चिंतक दामोदरी लाल मूंदड़ा का रविवार प्रात: ह्रद्याघात से निधन की खबर से शहर में शोक की लहर दौड़ गई। एक चिंतक, इतिहासवेत्ता, ज्योतिष मार्तण्ड, साहित्य रसिक, बहु आयामी व्यक्तित्व के धनी व्यक्ति के रूप में अपनी पहचान रखने वाले स्व. मूंदड़ा की प्रारम्भिक शिक्षा सुजानगढ़ में हुई। 22 दिसम्बर 1928 को मुम्बई में जन्में स्व. मूंदड़ा हिन्दी, अंग्रेजी, उर्दू, राजस्थानी व संस्कृत के ज्ञाता थे। कस्बे के विकास के लिए वे सदैव चिंतनशील व प्रयत्नशील रहे। उनकी लिखी पुस्तकें दुष्टिकोण, कपड़छान, गवाक्ष, दृष्टिपात सहित आठ पुस्तकें प्रकाशित हुई है। उनके लिखे आलेख भी विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं। मूंदड़ा ने अपने जीवन में अनेक बार विदेश यात्राएं की।
राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की अनेकों हस्तियों से उनके अंतरंग सम्बन्ध रहे हैं। मूंदड़ा होम्योपैथी चिकित्सा के सम्बन्ध में भी अच्छा ज्ञान रखते थे। नगर में प्रथम होम्योपैथिक चिकित्सालय का संचालन भी मंूदड़ा ने किया था। मूंदड़ा जीवनपर्यन्त राजस्थानी भाषा की मान्यता के प्रबल समर्थक रहे। स्व. मंूदड़ा अपने पीछे पुत्र शशिकान्त, रविकान्त, पुत्री स्नेहा, संगीता सहित भरा-पूरा परिवार छोडक़र गये हैं।
मूंदड़ा के निधन पर हिन्दूस्तान मोटर्स के पूर्व चैयरमैन सुन्दरमल भट्टड़, राजस्थान प्रचारिणी सभा के अध्यक्ष रतन शाह, प्रख्यात कर विशेषज्ञ नारायण जैन, वरिष्ठ साहित्यकार एड. श्याम वात्स्यायन, स्वतंत्रता सेनानी हीरालाल शर्मा, पूर्व शिक्षा मंत्री मा. भंवरलाल मेघवाल, विधायक खेमाराम मेघवाल, पूर्व विधायक रामेश्वर भाटी, राजस्थान बंगाल मैत्री परिषद के अध्यक्ष बाबूलाल दूगड़, जाट महासभा महाराष्ट्र के अध्यक्ष मंगलचंद चौधरी, साहित्यकार प्रो. भंवरसिंह सामौर, एड. हेमन्त शर्मा, तनसुखराय रामपुरिया, एड. चौधरी सुल्तान खां राही, मांगीलाल भाटी, सुजानगढ़ व्यापार मण्डल के अध्यक्ष प्रदीप तोदी, सभापति सिकन्दर अली खिलजी, शंकर सामरिया, यंग्स क्लब के अध्यक्ष निर्मल भूतोडिय़ा, मरूदेश संस्थान के अध्यक्ष व साहित्यकार डा. घनश्यामनाथ कच्छावा ने शोक व्यक्त किया है।