
सद्गुरू सदाफल देव विहंगम योग संस्थान सुजानगढ़ एवं महर्षि सदाफलदेव आश्रम झूंसी प्रयाग द्वारा स्थानीय श्री गोपाल गौशाला प्रांगण में आयोजित सद्गुरू सदाफलदेव 1008 कुण्डीय विश्व शांति वैदिक महायज्ञ एवं ब्रह्मविद्या विहंगम योग संत समागम कार्यक्रम में उपस्थित जनसमुदाय को सम्बोधित करते हुए विज्ञानदेव जी महाराज ने कहा कि भारत ऋषि और कृषि का देश है। यहां पर ऋषि और कृषि में समानता है। दोनो ही समाज के लिए सेवा करते हैं। उन्होने कहा कि ज्ञान और समन्वय की भावना आपस में हमें एक दूसरे से जोड़े रखती है। सेवा धर्म को महान धर्म बताते हुए महाराज ने कहा कि प्रत्येक जीव एवं वस्तुु के मूल में ईश्वरीय तत्व का आधार है। सृष्टि ईश्वर से ओत प्रोत है तथा वैज्ञानिक ईश्वर के नियमों को जानने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होने कहा कि हमारी संस्कृति दूसरों के लिए जीना सिखाती है।
मन पर नियंत्रण करने को अच्छा बताते हुए महाराज ने कहा कि सेवा से कल्याण होता है तथा लोक – परलोक दोनो सुधरते हैं। मन, वचन, शरीर और धन को सेवा का माध्यम बताते हुए महाराज ने विवेक, धैर्य, क्षमा और शांति को मनुष्य का आभूषण बताया। महाराज ने कहा कि विभिन्न आयोजनों एवं कार्यक्रमों में किसी धनी एवं समृद्ध व्यक्ति का सम्मान नहीं होता है, सम्मान उस व्यक्ति द्वारा किये गये त्याग एवं सेवा का होता है। कार्यक्रम में विभिन्न प्रकार के योग बताये गये तथा स्वर्वेद की वाणी का सस्वर पाठ किया गया। कार्यक्रम में देर रात महर्षि सदाफल देव आश्रम प्रयागराज के सद्गुरू आचार्य स्वतंत्रदेव जी महाराज ने दर्शन दिये तथा उपस्थितजनों को आर्शीवाद दिया। इस अवसर पर राष्ट्रीय संत मोहन कालोनिया, तापडिय़ा आईटीआई जसवन्तगढ़ के वी.के. नागर, माणकचन्द सराफ, मदनमोहन मंगलूनिया, इन्द्रचन्द तंंवर, बजरंगलाल बोचीवाल, पवन बेडिय़ा, नवरतन पुरोहित घनश्यामनाथ कच्छावा, किशोर सैन सहित अनेक गणमान्यजन उपस्थित थे।
रविवार सुबह 1008 कुण्डीय विश्वशांति वैदिक महायज्ञ का आयोजन किया गया। जिसमें 1008 हवन कुण्डों में यजमानों ने वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ आहूतियां दी। महायज्ञ के पश्चात भण्डारा प्रसाद का आयोजन किया गया। जिसमें हजारों श्रद्धालुओं ने प्रसाद ग्रहण किया। संत समागम में सुजानगढ़ से बाहर के सीकर, नवलगढ़, दिल्ली सहित विभिन्न शहरों से अनेक श्रद्धालुओं ने पंहूचकर धर्मलाभ लिया।