
शहर में जगह-जगह झूलते तार कस्बे के चांद बास में हुए हादसे और बागड़ा भवन के पास गिरे जर्जर पोल से टले हादसे के बाद भी विद्युत विभाग अभी भी अपनी कुम्भकर्णी नींद से नहीं जागा है। शहर में जगह-जगह झूलते तार 1983 में आई हिन्दी फिल्म हादसा के गाने ‘‘ये बॉम्बे शहर हादसों का शहर है’’ की याद दिला रहे हैं। कस्बे की सालासर रोड़ पर नाईयों के श्मसान के आगे मुख्य सड़क किनारे लगे बिजली के पोलों से ऐसे तार झूल रहे हैं, जैसे किसी ने झूलने के लिए झूला लगाया हो। सड़क से मात्र पांच फीट की ऊंचाई पर झूल रहे बिजली के तारों से पैदल चलने वाले राहगीर भी दहशत में हैं।
पार्षद पूसाराम मेघवाल एवं मौहल्लेवासियों द्वारा विद्यूत विभाग के अधिकारियों को लिखित एवं मौखिक रूप से दर्जनों शिकायतें करने के बाद भी तार वैसे ही झूल रहे हैं। इन्हे खींचने वाला कोई नहीं आया है। सड़क से गुजरने वाले वाहन से बचने के लिए साईड में होने पर राहगीर तथा सामने से आ रहे वाहन को साईड देने के चक्कर में कोई भी वाहन चालक इन तारों की चपेट में आ सकता है। सड़क पर एक ओर साईड में चलने वाले पशुओं की जान खतरा भी इन तारों से बना हुआ है। लेकिन विभाग है कि अपनी आंखों को खोलना ही नहीं चाहता या फिर जान बूझ कर खोलना नहीं चाहता। शहर में जगह-जगह झूल रहे बिजली के तारों को देखते हुए तो ऐसा लग रहा है कि बिजली विभाग के अधिकारियों को भी और हादसों का इंतजार है।