बिल्लोटों की लड़ाई में कहीं फिर से बन्दर खा ना जाये रोटी

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चुनाव की रणभेरी बज चूकी है। आगामी एक दिसम्बर को प्रदेश की नई सरकार के लिए मतदान होना है। एक ओर कांग्रेस से जहां वर्तमान विधायक मा. भंवरलाल मेघवाल के अलावा कोई और टिकट का दावेदार नहीं है, वहीं भाजपा में सूत ना कपास और जुलाहों में लठ्ठम लठ्ठा की कहावत को चरितार्थ करते हुए करीब आधा दर्जन टिकट के दावेदार कुकुरमुत्तों की तरह ताल ठोकते नजर आ रहे हैं। भाजपा में पूर्व मंत्री खेमाराम मेघवाल, पूर्व विधायक रामेश्वर भाटी, भाजपा अनुसूचित जाति मोर्चा के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य गणेश मण्डावरिया, भारत पेट्रोलियम के पूर्व इंजि. बाबूलाल तेजस्वी, महिला एवं बाल विकास अधिकारी पुष्पलता मण्डार टिकट के लिए अपनी दावेदारी जता रहे हैं।

ज्यों-ज्यों चुनाव नजदीक आ रहे हैं, त्यों-त्यों दावेदारों की टिकट की घोषणा नहीं होने से धड़कने बढऩे लगी है। आमजनता टिकट की इस लड़ाई को खेमाराम व रामेश्वर के मध्य ही मान रही है। वहीं आज तक के इतिहास को उठाकर देखा जाये तो भाजपा की टिकट पर एक बार विधायक बनने वाला यहां से दोबारा विधायक नहीं बना है तथा हर बार नये चेहरे को टिकट देने पर भाजपा यहां से कांग्रेस प्रत्याशी मा. भंवरलाल को हराकर विधानसभा में पंहूच पाई है। नये चेहरों में बाबूलाल तेजस्वी, पुष्पलता मण्डार और गणेश मण्डावरिया में टिकट को लेकर जोर आजमाईश चल रही है तथा सब अपने-अपने गॉड फादर से सम्पर्क कर येन-केन प्रकारेण टिकट लाने की जुगत भिड़ा रहे हैं। वहीं दूसरी ओर खेमाराम मेघवाल व रामेश्वर भाटी प्रदेश पदाधिकारियों के समक्ष अपनी सीधी बात रख कर अपनी जीत के दावे कर रहे हैं।

खेमाराम जहां अपनी टिकट के प्रति आश्वस्त है, वहीं रामेश्वर टिकट नहीं मिलने पर फिर से बागी होकर चुनाव लडऩे के मुड में हैं। जिस पर आम जनता में चर्चा है कि खेमाराम-रामेश्वर के झगड़े में कहीं पिछली बार की तरह जीती बाजी भाजपा फिर से हार ना जाये। दूसरी ओर कार्यकर्ता किंकर्तव्यविमुढ़ होकर खड़ा है कि किसके साथ जाये और किसके साथ नहीं। खेमाराम को टिकट मिलने पर रामेश्वर के बागी खड़े होने पर मा. भंवरलाल की जीत तय सी नजर आ रही है। इसी सम्भावना को देखते हुए एक बुद्धिजीवी ने बन्दर व बिल्लियों की कहानी सुनाते हुए कहा कि बिल्लोटों की लड़ाई में कहीं फिर से बन्दर रोटी ना खा जाये।

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