साधना-आराधना, उपासना व अहिंसा संयम ,तप का त्रिवेणी संगम असत्य से सत्य की तरफ ले जाने वाला पर्व पयुर्षण जो कि आत्मिक कल्याण की भावना का संदेश देता है। उक्त विचार जैनाचार्य दिव्यानंद विजय निराले बाबा ने समन्वय चातुर्मास के दौरान सिंघी जैन मंदिर में आयोजित कार्यक्रम में प्रस्तुत किए। निराले बाबा ने कहा कि चातुर्मास का सार पयुर्षण पर्व और पयुर्षण सार सावंत सरिक पर्व और इसका भी सार आत्मा लोचन क्रिया प्रतिक्रमण है। कि साल भर एक सच्चे श्रावण का क्या उद्देश्य होना चाहिए जिसके जीवन में श्रा से श्रदा और व से विवेक तथा क से कर्तव्य अर्थात श्रद्धा विवेक से जो धर्म के कर्तव्य का पालन करता है।
वही मानव धर्म का सच्चा सिपाही या श्रावक कहलाने का हकदार बनता है। अष्टाहिनका प्रवचन की व्याख्या करते हुए कहा कि इन दिनों में प्रत्येक उपासक को पांच कर्तव्य का पालन करना चाहिए। प्रथम अमारी घोषणा यानि अहिंसा श्रावक इन दिनो में ज्यादा से ज्यादा मन से बचन से काया से अहिंसा की पालना सूक्षम दृष्टिकोण से करे छोटे से छोटा प्राणी भी मरना नही चाहता है तो ऐसी स्थिति में उस प्राणी को मरने से बचाना ही अहिंसा है। दूसरा कर्तव्य साधर्मिक वाल्सल्य यानि महावीर के सिद्धांत में परिग्रह का संदेश दिया। इस अवसर पर विजय राज सिंघी, दीपचंद सिंघी, अशोक राखेचा, गोपाल भोजक, दुलीचंद चौपड़ा, सुल्तान खां चौधरी सहित अनेक लोग उपस्थित थे।