गत रात्रि को मदरसा आबादुल मुस्लिमीन चांदबास के सामने फैजाने रमजान कांफ्रेंस के नाम से एक शानदार जलसे का आयोजन हुआ। पीरे तरीकत सैयद जुहूर अली के सानिध्य एवं कारी मन्सूर आलम की अध्यक्षता में हुए जलसे का आगाज मौलाना मो. हुसैन काजी ने तिलावते कुरआन से किया। जाफर हुसैन बडग़ुजर ने नाते करीम गुन गुनाई तथा मो. अहमद रजा ने इश्के-रसूल विषय पर तकरीर पेश की। जायल के नन्हे नातख्वाह गुलाम मुस्तफा ने पुर तरन्नुम देखे जहान वाले रूत्बा मेरे नबी का , कुरआन पढ रहा है खुतबा मेरे नबी का सुनाकर महफिल को परवान चढाया। मेड़ता के कारी रईश अहमद सिद्दीकी ने पंजाबी, उर्दू व राजस्थानी में एक से बढकर एक प्रस्तुतियां दी। आपकी रचना या जोशे पिया रंगदे मोरी ऐसी चुनरिया, इतराये फिरू सारी बगदाद नगरिया, पर आपको खुब दाद मिली। अल्लामा मो. युनूस मिस्बाही ने इबादते इसाही व सुन्नते रसूल विषय पर तकरीर करते हुए कहा कि इबादत बंदे को खुदा से मिलाती है।
बंदा जब इबादत करे तो तस्सवुर करे कि वो खुदा को देख रहा है ओर खुदा उसको देख रहा है। नमाज, रोजा, हज, जकात इबादत है। नबी ए करीम की सुन्नतो को जिसने अपनी जिन्दगी में उतार लिया वो कामयाब हो गया क्योकि नबी की सुन्नतो पर चलना भी इबादत है। अपना किरदार नबी की सुन्नतो के मुताबिक बनाओं , कामयाबी तुम्हारे कदम चूमेगी। शेरे मेवात मुफ्ती मो. ईसाक ने रोजे की फजीलत बयान करते हुए कहा कि रोजे का अरबी शब्द सोम है। जिसका अर्थ प्रात: काल से सूरज डूबने तक अपने को खाने पीने व सोहबत से रोकना है। चुगली, बुरे कामो से अपने को रोको क्योकि रोजे की हालत में ये सब हराम काम है।
खुदा से डरो अपने गुनाहो की तौबा करो तथा खुदाकी इबादत करो। तौबा बुनाहो की दवा है इस महीने में की गई एक नेकी का सबाब दस गुना मिलता है। पीरे तरीकत सैयद जहूर साहब ने अमनो अमाम , भाईचारा व बरसात के लिए दुआ करवाई। संचालन मौलाना अब्दुल सलाम खीची ने किया। इस अवसर पर शम्सुद्दीन स्नेही,शहर काजी मो. आरिफ, हाफिज जुबैर आलम, आफताब आलम, काजी लियाकत, अकरम रजा,कारी बिलाल, सैयद मो. यामीन, मो.रफीक मिस्बाही, मौलाना इस्लाम, मौलाना आबिद, जावेद दय्या, काजी इलियास, मो. अयूब, जरीफ अहमद, हाफिज इकबाल,हाफिज गुलाम नबी, मौलाना साजिद सहित बड़ी संख्या मुस्लिम भाई उपस्थित थे।