जैनाचार्य दिव्यानंद विजय महाराज ने कहा कि गोस्वामी तुलसीदास जी ने हनुमान चालीसा की रचना करने से पूर्व गुरू के चरणो को प्रणाम किया था उन्होने समझा कि प्रभू से भी पहले गुरू की आवश्यकता है। वे रविवार को सिंघी जैन मंदिर आयोजित बालाजी भक्ति ज्ञान वर्षा कार्यक्रम में उपस्थित भक्तो को सम्बोधित कर रहे थे। निराले बाबा ने कहा कि इस दुनिया में परमात्मा को भी गुरू की शरण जाना पड़ता है तो जैन धर्म में नमस्कार महामंत्र जिसमें कहा गया है कि नमो लोए सव्व सदूणं कि इस लोक में जितने भी संत है उन सबको नमस्कार हो इस मंत्र से अगर हम आत्मा से ऐसे भाव अगर बना ले तो निश्चित इस मंत्र का इतना प्रभाव आज भी इस कलयुग में हम देख सक ते।
उन्होने भजन की पंक्ति से भक्तो को समझाया कि संत का सम्मान होना चाहिए, देव सा व्यवहार होना चाहिए। जब तक भारत देश में संतो का सम्मान होता रहेगा तो देश का कोई बाल बाक्का भी नही कर सकता। संत के लिए जाति पाति धर्म सम्प्रदाय नही पुछा जाता संत का ज्ञान देखा जाता है। संत के पास सरस्वती हो तो संत महान होता गृहस्थ के पास लक्ष्मी हो तो वो महान गिना जाता है। इस लिए संत के ज्ञान को देखना चाहिए ओर अन्य देशो में भी भारत के संतो की महिमा गाई जाती है। क्योकि संत वहां पैदा नही होते इस लिए हमारा भारत विश्व गुरू नाम से जाना पहचाना जाता है। इस अवसर पर फलौदी के कुशल चंद गोलछा, दीप चंद सिंघी, नगराज सेठिया, हनुमान बाफना, निर्मल भूतोडिय़ा, देवेन्द्र कुंडलिया, विमल संचेती सहित अनेक भक्त उपस्थित थे।