स्थानीय सिंघी जैन मंदिर में समन्वय चातुर्मास के दौरान आयोजित प्रवचन माला में आचार्य दिव्यानंद विजय महाराज ने कहा कि भगवान महावीर स्वामी ने अपनी वाणी में दान, शील,तप, भाव के संदेश में कहा कि दान गुप्त होना चाहिए। दान को एक हाथ से दिया दुसरे हाथ को भी मालूम नही होना चाहिए। दान जितना गुप्त होता है उतना ही प्रभावशाली होता है।
उन्होने कहा कि जैसे बीज भूमि के ऊपर रहता तो उसमें अंकुर नही फुटता है ओर जैसी बीज भूमि में मिट्टी में ढक जायेगा तो वह गुप्ता हो जायेगा ओर कुछ समय बाद अंकुर के रूप में फुटकर बाहर निकलने लगेगा। लेकिन आज समय विपरित आ गया है। जब व्यक्ति दिया हुए दान को दस लोगो में बताता नही तब तक उसको शांति नही होती है। दुसरा संदेश शील का देते हुए बताया कि जीवन में ब्रह्मचर्य होगा निश्चित ही उसके चेहरे पर चमक होगी। जैन हमारे हनुमान जी का जीवन ब्रह्मचर्य या तो ब्रह्म ज्ञान की प्राप्ति करता या अजर अमर पद को प्राप्त होता है। जब कि पता नही लगना चाहिए। गुप्त होना चाहिए।
लेकिन ऐसी स्थितियों में पता लग जाता है। निराले बाबा ने कहा कि शीलव्रत से व्यक्ति दुनिया में जो चाहे सो कर सकता है इस लिए हमारे जैसे संत समाज श्रावको को संकेत करते है कि क म से कम चार महिने का शील व्रत का पालन प्रत्येक भक्त को करना चाहिए। परमात्मा व महात्माओं के जीवन के अन्दर इतनी शक्ति सामाथ्र्य नजर आता है तो निश्चित ब्रह्मचर्य या शील व्रत का ही कारण होता है। इस अवसर पर सुनरल श्रीमाल, निर्मल भूतोडिय़ा, अशोक सिंघी, अशोक राखेचा, कैलाश सुरोलिया, सुरेश कौशिक, दीपचंद सहित अनेक भक्त उपस्थित थे।