स्थानीय सिंघी मंदिर परिसर में जैनाचार्य दिव्यानंद विजय निराले बाबा ने उपस्थित भक्तो को सम्बोधित करते हुए कहा कि कर्म को शर्म नही अगर कर्म आपने पुण्य किया है तो भी भोगना पड़ेगा तथा पाप किया है तो भी भूगतान करना पड़ेगा। धन दौलत , मकान-मिलकत, शान शोहरत सब कुछ यही पर रह जायेगा। अगर में कुछ भी जायेगा तो पाप ओर पुण्य। उन्होने कहा कि सिकन्दर बादशाह ने भी अपने काल में जीते हुए धन दौलत से बड़े बड़े गोदाम भरे लेकिन अन्तिम सांस के क्षणो में अपने सवको से कह दिया जब अर्थी निकालो तो मेरे दोनो हाथ बाहर रख देना।
एक हाथ में सफेद रंग देना दूसरे पर काला। सारी दुनिया देखेगी तो सिकन्दर गया तो दोनो हाथ खाली है लेकिन काला रंग देखेगी तो पाप ओर सफेद रंग देखेगी तो पुण्य प्रत्येक जीवात्मा का जन्म भी अलग अलग योनी में होता है तो पाप ओर पुण्य के कारण पाप तो व्यक्ति हंसते-हंसते कर लेता है लेकिन रोते रोते भी छुटकारा नही मिलता। आज व्यक्ति कहता कि इस जन्म में मैने कोई पाप नही किया लेकिन फिर भ्ज्ञी खाने को रोटी नी मिलती, पहनने को कपडाा नही मिलता तो समझ लेना चाहिए पिछले बीते जन्मो के अन्दर पाप किया होगा। महाराजा हरीश चन्द्र ने झूठ नही बोला जीवन में फिर भी श्मसान की नौकरी करनी पड़ी तो कारण देखे तो पिछले जन्मो के किये गये पाप। इन पापो से छुटकारा कलयुग में मिल सकता है।
सत्संग के द्वारा गौस्वामी तुलसी दास जी कहते है सत्संग बिनु विवेक नाहिं सत्संग के बिना विवेक नही आ सकता और अगर विवेक आ गया तो व्यक्ति पाप ओर पुण्य समझने लग जायेगा। इस लिए सत्संग प्रवचन जरूरी सुनना चाहिए। इस अवसर पर नगराज सेठिया, सुनील श्रीमाल, अशोक राखेचा, बाबूलाल जांगीड़, हरीराम, श्रीमति चन्द्रप्रभा, कमला सिंघी, सरला सेठिया सहित अनेक भक्त उपस्थित थे।