स्थानीय सिंघी मन्दिर में चार्तुमास कर रहे प्रखर वक्ता मुनि प्रवर दिव्यानन्द विजय जी महाराज सा ने उपस्थित श्रद्धालुओं को सम्बोधित करते हुए कहा कि जीव मन में ईश्वर के प्रति सच्चा प्रेम पैदा करें, क्योंकि सच्चा प्रेम होने पर ही ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है। निराले बाबा ने कहा कि प्रेम के धागे में ईश्वर इस प्रकार बंध जाते हैं कि एक बार बंधने के बाद हर पल अपने भक्त के साथ ही रहते हैं। उन्होने कहा कि शास्त्र व सद्ग्रन्थ कहते हैं कि ईश्वर प्राप्ति का सच्चा मार्ग प्रेम है और वह सृष्टि का व्यवस्थापक नियंता है।
धरती और आकाश को चक्की के दो पाटों की संज्ञा देते हुए ईश्वर को चक्की की कील बताते हुए मुनि प्रवर ने कहा कि जिस प्रकार चक्की में कील के पास रहने वाले अन्न के दानों की पिसाई नहीं होती है, उसी प्रकार ईश्वर के समीप रहने वाले से सभी प्रकार के दु:ख, भय, समस्यायें दूर रहती है। महाराज ने कहा कि तकनीक के इस युग में जिस प्रकार किसी मशीनरी को एक रिमोट से कन्ट्रोल किया जा सकता है और उसे चलाने वाला कोई और है। उसी प्रकार संसार को चलाने वाला भी कोई है। महाराज ने कहा कि संसार का सच्चा सुख परमात्मा की प्राप्ति करने में हैं और उसे सुमिरन कर प्राप्त किया जा सकता है।
संत परमात्मा की प्राप्ति में हमारा मार्गदर्शन कर सकते हैं। उन्होने कहा कि अपने भीतर के प्रेम की जागृति से ही गुरू को पाया जा सकता है। इधर – उधर भटकने से किसी को कभी भी गुरू नहीं मिल सकता व बिना गुरू के ज्ञान नहीं मिल सकता। महाराज ने कहा कि कलयुग में सत्संग में जाकर व शांत चित होकर गुरू वाणी के अर्थ को समझा जाये, तभी परमात्मा की प्राप्ति हो सकती है।