स्थानीय अग्रसेन भवन में आयोजित ओमप्रकाश सराफ द्वारा आयोजित श्रीमद्भागवत कथा का अमृतपान करवाते हुए व्यासपीठ पर विराजमान मुम्बई से पधारे पं. दीनदयाल दाधीच ने अश्वत्थामा की कथा कहते हुए कहा कि हमें ऐसा कोई अपराध या पाप नहीं करना चाहिए, जिसकी सजा भगवान हमें दे। उन्होने कहा कि परपीड़ा को हरने वाला ही हरि है, इसलिए कोई भी ऐसा कार्य नहीं करें, जिससे दूसरे को पीड़ा हो। भागवत मर्मज्ञ दाधीच ने कहा कि व्यक्ति अपने पास की वस्तु का महत्व को नहीं पहचानता है, जबकि अपने से दूर की वस्तु का महत्व पहचानता है। भगवद् कृपा से जीवन को आनन्दमय बनाने का आह्वान करते हुए महाराज ने कहा कि जैसा अन्न खाओगे वैसा मन होगा तथा भगवान भक्त के वश में है। इससे पूर्व कथा शुभारम्भ से पूर्व लालचन्द मितल, माणकचन्द सराफ, मांगीलाल, तनसुख शर्मा, गजानन्द जांगीड़, शिवकुमार सराफ, कैलाश सराफ, महेश सराफ ने पं. दीनदयाल दाधीच का स्वागत किया। कथा के दौरान सत्यनारायण चाण्डक, विजयसिंह बोरड़, मधुसूदन अग्रवाल उपस्थित थे।