
माहे रमजान के अंतिम असरे में सताईसवीं रात लैलतुल कद्र निहायत अकीदत व एहतराम के साथ रब-ताअल्ला की खुशनूदी के लिए गुजरी। मस्जिदों में मुसलमान भाईयों ने तिलावते कुरान, नफल नवाज की अदायगी, तस्बीहात व जिक्रो अजकार के जरिये इस मुकद्दस रात में इबादत की।
खतम-ए-कुरआन के लिए हाफिज हजरात ने खुशूसी दुआऐं मांगी। मुकत्तदियों की तरफ से इमाम हजरत को नजराना पेश किया गया। सभी मस्जिदों में इस अवसर पर आयोजित जलसों में शबे कद्र की फजीलत एतकाफ, जकात, फित्रा आदि विषयों पर तकरीरें हुई। ईदगाह में आयोजित कार्यक्रम में हाफिज जुबैर सलामी ने कहा कि शबे कद्र की एक रात एक हजार महीनों की रातों से बेहतर है।
माहे रमजान में नफल नमाजों का सबाब फज्र नमाजों के बराबर है। उक्त जानकारी हाजी शम्सूद्दीन स्नेही ने दी। रमजान का आखिरी जुम्मा होने पर शहर की सभी मस्जिदों को रोशनी से सजाया गया। पूरी रात इबादत होती रही व हर एक अपने गुनाहों की तौबा करता रहा। इस रात को जो सच्चे दिल से तौबा करता है, उसे माफ कर दिया जाता है। जो जायज तमन्ना होती है, उसे पूरा किया जाता है।