रामायण हमें जीना सिखाती है तो भागवत मरना -बालयोगिनी करूणागिरी

स्थानीय एन.के. लोहिया स्टेडियम में ओमप्रकाश सत्यनारायण कांकाणी के सौजन्य आयोजित श्रीमद् भागवत कथा में उपस्थित श्रद्धालुओं को कथा का अमृतपान करवाते हुए व्यासपीठ पर विराजमान बाल योगिनी साध्वी करूणागिरी ने कृष्ण-सुदामा की मैत्री का ऐसा मार्मिक चित्रण एवं वर्णन किया कि पाण्डाल में उपस्थित श्रद्धालुओं की आंखों से अश्रुधारा बह निकली। साध्वी जी ने कहा कि ऊंच-नीच, अमीर-गरीब के भेद से ऊपर उठकर निभाई जाती है, वही सच्ची मित्रता है। कष्ट एवं संकट में ही मित्र की सही पहचान होती है। उन्होने कथा में बताया कि जब सभी यदुवंशी अभिमान और नशे में पददलित होने तो मूसल कथा के द्वारा उन सभी का अंत कर भगवान श्रीकृष्ण अपनी लीला समेटने लगे। त्रेतायुग में छिपकर बाली को बाण मारने के कर्म का द्वापर युग में बाली ने शिकारी बनकर श्रीकृष्ण के पांव के तलवे में बाण मारकर बदला लिया।

इससे यही प्रतीत होता है कि सभी को अपने कर्मों का फल भोगना पड़ता है। भागवत कथा सुनने के बाद राजा परीक्षित ने शुकदेव जी महाराज को विदा किया और योगबल से अपने प्राणों को भागवत जी के चरणों में समर्पित कर दिया और उसके निर्जीव शरीर को तक्षक नाग ने डस लिया। भागवत कथा के समापन पर शोभायात्रा के साथ भागवत जी को पंहूचाया गया। साध्वी करूणा गिरी ने कहा कि रामायण हमें जीना सिखाती है और भागवत मरना सिखाती है। कथा से पूर्व मदनलाल इनाणियां, एड. भीमशंकर शर्मा, निरंजन तापडिय़ा, द्वारकाप्रसाद सारड़ा, सुभाष पारीक, गोरधनलाल कांकाणी, नोरतन पारीक, कमल सारड़ा, मंगनीराम सोनी, धनराज सोनी, बजरंग सोमानी, राधिका, सोहनी बाई, सरोज राठी, किरण भूतड़ा, शांतिबाई, कविता सोमानी एवं नरेन्द्र भाटी ने साध्वी जी को पुष्पगुच्छ भेंटकर उनका स्वागत किया।

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